दीर्घावधि उर्वरक परीक्षण, जो कि विगत 27 वर्षों से भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् कि वितीय सहायता से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के राजस्थान कृषि महाविद्यालय में संचालित है, इस परियोजना में लगातार मक्का एवं गेहूँ कि फसल चक्र में पोषक तत्वों के प्रयोग पर परीक्षण चल रहा है तथा इसकी अनुशंसाओं से उदयपुर जिलों के जनजाति क्षेत्रों के किसान कृषि उपज में वृद्धि से लाभान्वित हो रहे हैं। बैठक दल के सभी सदस्य, वैज्ञानिकों एवं कृषकों द्वारा प्रक्षेत्र का अवलोकन कर पोषक तत्वों के प्रभाव को बारीकी से अवलोकन किया।
इस परियोजना की पश्चिमी क्षेत्र की तीन दिवसीय समीक्षा बैठक में वैज्ञानिकों के दल ने आज जनजाति कृषकों से सीधे संवाद किया। संवाद के दौरान डॉ पी. के. शर्मा, पूर्व कुलपति, शेरे-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू, ने कृषकों से मृदा के नमूनें लेने कि विधि एवं पोषक तत्वों के बारें में पूंछा तो किसानों ने बहुत ही आसन भाषा में उत्तर दिए। जनजाति योजनान्तर्गत प्रथम पंक्ति प्रदर्शन दिए गए थे उनकी प्रगति के बारे में जानकारी ली एवं इस योजना से कृषकों ने हुए लाभ के बारे में विस्तार से चर्चा की। संवाद कार्यक्रम में कृषकों ने वैज्ञानिकों से मक्का एवं गेहूँ की फसलों में लगने वाली बिमारियों एवं कीट प्रबंधन पर कई प्रश्न पूछे जिसका समाधान समीक्षा दल की डॉ. आर. सांथी, डॉ. वी. खर्चे, डॉ. आर. पड़ारिया एवं डॉ. आर. एलान्चेजीयन ने किया। सभी वैज्ञानिकों ने तरल जैव उर्वरक प्रयोगशाला का भी भ्रमण किया एवं संवाद के दौरान प्रयोगशाला उत्पादित तरल जैव उर्वरकों को कृषकों को वितरित कर एवं उनका फसलों में महत्व को विस्तार से समझाया। यह संवाद कार्यक्रम मक्का की फसल प्रक्षेत्र पर ही आयोजीत किया गया, जिसे देखकर कृषक एवं वैज्ञानिक दल के सदस्य अभिभूत हो गए। संवाद के सूत्रधार बनते हुए परियोजना अधिकारी डॉ. सुभाष मीणा ने कार्यक्रम को संचालित करते हुए कृषकों एवं वैज्ञानिकों के बीच संवाद हेतु सेतू का कार्य किया।
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